रविवार का दिन था और एक सैलून में दाढ़ी बनवाने के लिए मैं अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था. सैलून लखनऊ मेल के जनरल डिब्बे की तरह खचाखच भरा हुआ था. सैलून में आया अखबार कई हिस्सों में बट चुका था, मुख्य पृष्ठ बगलवाले भाई साहब के हाथो में था तो सम्पादकीय बालों में डाई लगाये सामने बैठे सज्जन की गिरफ्त में. बड़ी मुश्किल से दो पृष्ठ मेरे भी हाथ में आये, पर ये क्या..? ये तो वर्गीकृत विज्ञापन वाले पन्ने थे. दोनो पृष्ठों पर लुभावने विज्ञापन भरे हुए थे बिलकुल वैसे ही अविश्वसनीय जैसे किसी सुंदर स्त्री से शादी का प्रस्ताव अखबार में प्रकाशित किया जाए और नीचे लिखा जाए की दहेज़ आकर्षक एवं चरित्र की गारंटी. एक तरफ से आकर्षक नौकरियां, घर बैठे कमाने के बड़े बड़े ऑफर, ५ मिनटों में लोन और तो और फुल बॉडी मसाज से कमाएं १० से १५ हज़ार रोज. पत्रकारिता की पढाई के दौरान वर्गीकृत विज्ञापनों पर एक छोटी सी रिसर्च करने के बाद ही मैं समझ गया था की इन विज्ञापनों को पढ़कर पैसा फ़साना वैसा ही है जैसे पंडित को दक्षिणा भी दे दो और फेरे भी न पड़ें. मन में एक सवाल कौंध गया क्या इन विज्ञापनों पर रोक नहीं लग सकती, क्या अखबार जनहित में इनके प्रकाशन को बंद नहीं कर सकता? वर्गीकृत विज्ञापन के प्रकाशन से पूर्व उसकी सच्चाई क्यों नहीं परखी जाती? क्या चोर चोर सच में मौसेरे भाई हैं....? इसी सोच में डूबा था कि बगलवाले भाई साहब का नंबर आ गया और उन्होंने अखबार मुझे पकड़ा दिया. मुख्य पृष्ठ पर प्रमुख खबर थी
छत से कूद कर महिला ने की ख़ुदकुशी
रिंग रोड पर इस फ्लैट में छः माह से चल रहा था मसाज पार्लर
बहुत सटीक सवाल .. बहरहाल रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteलेख अच्छा लगा धन्यवाद|
ReplyDeleteअखबारों का धंधा विज्ञापनों से ही तो है. विज्ञापनों की हकीकत जानने की कोशिश करेंगे तो इन्हें विज्ञापन देगा कौन? रोजाना छपने वाले अपराध-समाचारों में कमी आ जायेगी. और फिर 'हेडलाइन' का इंट्रो कैसे तैयार करेंगे?
ReplyDeleteआपकी चिंता वाजिब है.
naked truth,
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