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"प्यार प्राथमिकताओं पर भावनाओ का अतिक्रमण है"

हमारे पुराने मित्र शैलेन्द्र जी जब अलीगंज, लखनऊ में रहते थे तो उन्ही के रूम पार्टनर थे महामना वेद प्रकाश जी... यूं तो स्वयं में वेद प्रकाश जी बहुत उलझे हुए प्रतीत होते थे परन्तु प्रेम के विषय में उनकी एकदम सीधी और सुलझी हुई सोच थी. उनकी बातो से स्पष्ट था की वो सिर्फ प्रेम प्रसंगों को सुनते दिलचस्पी से हैं, रसोस्वादन में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं. वो जहाँ रहते थे वहां नौजवानों का तांता लगा रहता था क्यूंकि टूटे दिल वालो को उनसे अच्छी तसल्ली कोई नहीं दे पाता था. एक दिन यूं ही किसी के प्रेम प्रसंग का विरह वेदना से ओत-प्रोत दृश्य चल रहा था की वेद प्रकाश जी अचानक बोल पड़े.... "प्यार प्राथमिकताओं पर भावनाओ का अतिक्रमण है". यूँ लगा जैसे बिजली कौंध गयी, सुवचन, अमृतवाणी, ब्रह्मवाक्य और न जाने क्या क्या... बस उस दिन से मैं स्वयं वेद प्रकाश जी का प्रशंसक हो गया और कसम खा ली की कभी भी अपने जीवन की प्राथमिकताओं पर प्यार को अतिक्रमण नहीं करने दूंगा. वक़्त गुजरने लगा, बीच में एक दो बार वेद प्रकाश जी से भेंट भी हुई. फिर एक दिन शैलेन्द्र जी ने मुझे मिलने बुलाया, साथ में वेद प्रकाश जी हैं ऐसी पूर्व सूचना थी, लेकिन जब वो मुझे दिखाई नहीं दिए तो मैं शैलेन्द्र जी से पूछ बैठा. शैलेन्द्र जी ने बड़ी ही मायूसी से इशारे के लिए अपने हाथ एक तरफ उठाये, पीछे मुड़ कर देखा तो वेद प्रकाश जी किसी से मोबाइल पर बात कर रहे थे. उनके चेहरे पर कहत नटत रीझत खीझत मिळत खिलात लजियात के स्पष्ट भाव थे, मुझे समझते देर न लगी कि प्राथमिकताओं पर भावनाओ का अतिक्रमण हो चुका है. फिर कुछ दिन बाद उसी फ़ोन वाली लड़की से वेद प्रकाश जी परिणय सूत्र में बंध गए, सौभाग्य से हम भी उस समारोह के गवाह बने.

2 comments:

  1. Maza aa gaya, bahut satik aur jivant chitra ukera hai aapne. badhai

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  2. lagta hai ab lekhak bhi atikraman karwane ki taiyyari me hai, gud luck

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