
भारतीय सिनेमा के प्रयोगवादी निर्देशक मणिरत्नम इस बार दर्शकों को बाँध नहीं पाए. फिल्म की कहानी को रामायण की कथा से बाँधने से न माया मिली न राम. सभी पात्र अपने चरित्र को स्थापित करने में नाकामयाब रहे. एक बार फिर दर्शकों ने अपने को ठगा सा महसूस किया. फिल्म में न तो रामचरित्र स्थापित हो पाया न ही रावणचरित्र. कहानी के पात्र रामायण से प्रभावित जरुर लगते हैं पर हर जगह यह प्रभाव थोपा हुआ सा लगता है. बीरा (अभिषेक बच्चन ), देव शर्मा ( विक्रम ) और रागिनी (ऐश्वर्या राय ) पर क्रमशः रावन, राम और सीता का प्रभाव जरुर है लेकिन वो कहीं भी इन पात्रो की गरिमा को बनाये रखने में सफल नहीं हुए. फिल्म में हनुमान से प्रेरित फोरेस्ट ऑफिसर का किरदार गोविंदा ने निभाया है लेकिन वो भी अपनी छवि से बहार नहीं निकल पाए या यूँ कहे की कथानक ने उन्हें गुंजाइश नहीं दी. अभिषेक बच्चन का अभिनय कहीं भी प्रभावित करता नहीं दिखा. ऐश्वर्या राय ने अच्छा अभिनय किया जरुर लेकिन कोई छाप छोड़ने में वो भी नाकामयाब रहीं. एडिटिंग में आधुनिकता और तकनीकियाँ तो साफ़ झलकती है किन्तु कलात्मकता कहीं छूट गयी. फिल्म के गीत संगीत को गुलज़ार और ऐ. आर. रहमान की हिट जोड़ी का साथ जरुर मिला लेकिन यहाँ भी इस बार निराश होना पड़ा. अगर ये कहें की मणिरत्नम की ये फिल्म दर्शको को रिझाने में कहीं से भी कामयाब नहीं हुई तो गलत नहीं होगा.
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