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आखिर वर्कर्स के पास भी logic हैं...

देश की तमाम companies के स्टाफ पर एक संछिप्त सर्वेक्षण करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ९९% लोगो कि यही  तकलीफ है कि उन्हें तनख्वाह अपने बॉस के unlogical  आदेशो को पूरे logic के साथ पूरा करने के लिए मिलती है. बॉस कितना भी समझदार क्यों न हो सबके पास उसको idiot साबित करने के अपने logic हैं.  जिसके पास जितना बड़ा logic उसका उतना बड़ा frustration लेकिन सबके सामने उतना ही चौड़ा सीना . दिन में चाय कि दूकान और रात में मधुशाला ऐसे ही क्रांतिकारियों से गुलज़ार रहती है. और एक ख़ास बात, दूसरो के पैसो से पीने वालों के लिए  सामने वाले की हाँ में हाँ मिलाना नैतिक मजबूरी होती है. फिर एक से बढ़कर एक जुमले छूटते हैं.  कुछ अत्यंत common से जुमले जो हमेशा सुनने को मिलेंगे उनमे से कुछ इस प्रकार  हैं :-
"अगर इतना पैसा कहीं और इन्वेस्ट किया होता तो कंपनी अच्छा business  karti"
"देखना चला थोड़ी न पायेंगे"
"इस तरह से मुझे काम ही नहीं करना, मैं तो चल दूंगा"
"सिर्फ काम बढ़ाते जा रहे हैं, पैसा बढाने को न कहो"
"बस ये महीना मेरा आखिरी महीना है"
"मेरा एक दोस्त XYZ  कंपनी में है, यहाँ से दुगनी तनख्वाह है और काम भी कम है"
"यहाँ किसी  चीज़  का कोई सिस्टम  ही नहीं है"
"क्या चूतियापा है यार"
".... में गयी नौकरी, बस कुछ दिन देख रहे हैं"
"अमा इनके चक्कर में फंस गए, अच्छा भला वहां काम कर  रहे थे"
"ऐसे कोई नौकरी नहीं करेगा यहाँ"  
"यहाँ आने का टाइम तो फिक्स है लेकिन जाने का नहीं"
"इस बार और देख रहे हैं बस"
"हमसे ज्यादा बोले तो सुना भी देंगे"

आगे ज्यादा नहीं लिखूंगा क्योंकि जानता हूँ मेरी इस पोस्ट में अब आगे आप लोग लिखेंगे. मैंने तो बस यूँही चुटकी ले ली.

2 comments:

  1. दिल की तन्हाई को आवाज बना लेते हैं,
    बॉस जब हद्द से गुजरता है तो गा लेते हैं, पी लेते हैं या छुट्टी ले लेते हैं.. हा हा

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  2. Boss is always right, kaun kare fight

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