सौभाग्य से P.N. Oak की विवादस्पद पुस्तक "The true story of Tajmahal" के कुछ अंश पढ़ने को मिले. ताजमहल या तेजोमहाल्या? मन में यही प्रश्न कौंध गया. जिज्ञासा का सांप मन को डसने लगा. फिर क्या था V.S.Godbole से लेकर Dr. Radhasyam Brahmachari तक को पढ़ डाला. उनके द्वारा तेजोमहाल्या के पक्ष में प्रस्तुत साक्ष्यों को देखकर हैरत में था क्या सचमुच ताजमहल कभी विशालकाय शिव मंदिर था? क्या ताजमहल या कथित तेजोम्हाल्या का अस्तित्व सचमुच शाहजहाँ से भी पुराना है? क्या शाहजहाँ ने तेजोमहाल्या को जयसिंह से लेकर ताजमहल में परिवर्तित कर दिया? क्या आज भी ताजमहल के बंद कमरों में पुराने मंदिर के अवशेष जिन्दा हैं? जिज्ञासा बढती जा रही थी. आगरा जाने की तीव्र इक्छा मेरे मन में घर करने लगी. २७ मई २०१० की मध्यरात्रि में लखनऊ से निकल कर अगले दिन २८ मई की सुबह भारतीय रेलवे की कृपा से ४ घंटे विलम्ब से सकुशल आगरा पहुँच गया. आगरा फोर्ट स्टेशन की दुर्दशा देख के मन बहुत निराश हुआ. खैर मेरी जिज्ञासा के आगे निराशा ज्यादा देर टिक नहीं पायी और होटल में सामान वगैरह रख कर ताजमहल के लिए निकल पड़े. होटल से ताजमहल कुल २.५ किलोमीटर दूर था, साइकिल रिक्शे से २० मिनट में पहुँच गए.
ताजमहल के एक किलोमीटर पहले से पर्यटकों के लिए चलने वाली ऊँट गाड़ी ने मेरा मन मोह लिया. इक्छा हुई मैं भी सवारी करूँ लेकिन प्राथमिकताओं ने इक्छाओं को दबा दिया. ताजमहल के बाहर देशी विदेशी सैलानिओं का तांता लगा हुआ था. भीषण गर्मी में भी काफी भीड़ थी. जल्द ही टिकेट लेकर मैं भी पूर्वी द्वार से अंदर जाने वाली भीड़ का हिस्सा बना. लम्बी लाइन, सघन तलाशी और अंततः मैं द्वार के अंदर. द्वार के अंदर प्रवेश करते ही दोनों तरफ बनी ईमारत को देश कर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हम किसी राजपुताना काल के किले के अंदर आ गए हों. इस बार दिमाग ने तर्क दिया, आँखें वही देखती हैं जो हम देखना चाहते हैं. आगे बढ़कर बायें हाथ पर फिर एक बड़ा सा प्रवेश द्वार मिला लेकिन इस बार मेरी उत्सुकता जल्द से जल्द ताजमहल की मुख्य इमारत तक पहुचने में ज्यादा थी. कुछ ही पलों में दुनिया का सातवां आश्चर्य मेरे सामने था. कुछ समय के लिए मैं ठहर गया, अतिभावान्वित या भावशून्य, कह नहीं सकता.
फिर मेरी नज़र वहां फोटो खिचवाते एक नवविवाहित जोड़े पर पड़ी. कैमरामैन के रैडी बोलते ही जो भाव उनके चेहरे पर आ रहे थे वो कहीं न कहीं मेरे अविवाहित जीवन को चुनौती देते प्रतीत होते थे. मुस्कुराते हुए वहां से मुख्य ईमारत की तरफ आगे बढ़ा. नजरे बराबर ताजमहल पर टिकी थी जो एकदम शांत अपना शीश आसमान में उठाये सबको बरबस अपनी और खीचे चला जा रहा था. मुख्य ईमारत के नीचे जूते उतार कर नंगे पैर मैंने ऊपर चढ़ना शुरू किया. मन में P. N. Oak और V.S. Godbole द्वारा लिखी एक एक बात तेजी से चलने लगी. उनके द्वारा दिए गए तर्कों और साक्ष्यों को करीब से देखने और परखने की नियत से मैं पूरी ईमारत को बड़े गौर से देखते हुए कैमरे से चित्र लेने लगा. कुछ एक स्थानों को छोड़ कर अधिकाँश जगह निराशा ही हाथ लगी क्योंकि विवादित पुस्तकों में वर्णित अधिकाँश स्थानों और कक्षों को या तो दिवार उठा के सील कर दिया गया है या उनके द्वारों पर सरकारी ताला जड़ा है. ऐसा लगा बहुत कुछ छुपाने का प्रयास किया गया है, लेकिन क्या? कह नहीं सकते. सामने उद्यान में कुछ देर बैठा ताजमहल को निहारता रहा. सामने वास्तुकला का बेजोड़ नमूना जाति धर्म मजहब से बहुत ऊपर उठ कर सभी को आकर्षित कर रहा था. ताजमहल के पीछे का सच कुछ भी हो लेकिन वो तो हर एक हिन्दुस्तानी के दिल में बसा है.
aapka article padh ke accha laga. lekin ek sawal chhoot gaya ki Tajmahal ya Tejomahalya?
ReplyDeletetejomahlaya ke baare me maine bhi suna hai but shayad ye ab kahin record me nahi hai
ReplyDeleteNice photographs
ReplyDeletehi this topic such a very researcher ....... keep it on .. we r with u
ReplyDeletethis topic such a very intersting do more reasearch keep it on ...........we r with u......
ReplyDeletetajmahal dekhkar aapka apna anubhav kya kahta hai? tajmahal ya Tejomahalya?
ReplyDeletelagta hai bhaiya ne Future me jaane wali machine bana li hai...nahi to aap December 2010 me vahan pe gaye...
ReplyDeleteaap apni time machine ka mujhe bhi safar karaeyega...
susheel gautam
ha ha that was a manual mistake.
ReplyDeleteStory of Tejomahalya is true, tajmahal still has many evidences of Tejomahalya.
ReplyDeletetajmahal ka darwaja purab ki aor kiun hai?it is stil a mystry.
ReplyDeleteye shiv mandir tha ,
ReplyDeleteits
queer!